अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. कैंपेन के दौरान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उन्हें ‘आतंकवादी’ कहा. दिल्ली के वोटरों ने उद्घोष किया- ‘राजा केजरीवाल’.
केजरीवाल उन मुख्यमंत्रियों के क्लब में शामिल हो गए हैं जिन्होंने सत्ता विरोधी रुझान को काबू में रख कर सत्ता में वापसी की. 50% से अधिक वोट शेयर दूसरी बार हासिल कर केजरीवाल और आप ने इतिहास रच दिया है.
AAP की जीत ने ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ कांग्रेस का सफाया कर दिया है जो लगातार दूसरी बार शून्य के स्कोर के साथ पवेलियन लौटी. बीजेपी के लिए AAP की जीत जरूर गुगली की तरह है. भगवा पार्टी की शुरू में रफ्तार सुस्त थी, लेकिन 25 जनवरी के बाद उसने प्रचार में अपना सब कुछ झोंक दिया.
5000 से अधिक प्रचार कार्यक्रम, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों, नेताओं की फौज और कैमरा-ऑनलाइन अभियान के साथ पार्टी ने जबरदस्त कैम्पेन चलाया, जिसका मकसद था- वोटरों का ध्रुवीकरण करना. लेकिन 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो केजरीवाल ने बीजेपी को बहुत पीछे छोड़ दिया, वो भी दुविधा के साथ. पार्टी यह तय नहीं कर सकती है कि ध्रुवीकरण के कारण वह 8 सीट पाने में कामयाब रही या इसकी वजह से उसने अधिक सीटें जीतने का मौका खो दिया.
दिल्ली ने क्यों केजरीवाल को चुना?